Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : हाल ही में पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी देते हुए बताया कि कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने G-7 समिट में भारत को आमंत्रित करने के लिए कॉल किया।
पीएम मोदी ने पोस्ट पर लिखते हुए पीएम कार्नी को उनकी हाल की चुनावी जीत पर बधाई दी और इस महीने के अंत में कॅननास्किस (Kananaskis) में G-7 शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रण देने के लिए धन्यवाद दिया। साथ ही उन्होंने भारत और कनाडा के आपसी सम्मान और साझा हितों को नए उत्साह के साथ आगे बढ़ाने की भी बात कही।
इसी बीच यह खबर आती है कि पीएम मोदी G-7 समिट में भाग लेने से पहले सायप्रस (Cyprus) की यात्रा करेंगे और समिट समाप्त होने के बाद क्रोएशिया (Croatia) की यात्रा करते हुए भारत आएंगे।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : जाने पूरा मामला…

दरअसल G-7 शिखर सम्मेलन 15 से 17 जून तक कनाडा के अल्बर्टा के कननास्किस (Kananaskis) में होने जा रहा है, जिसमें मोदी अंतिम दिन सेमिनार में भाग लेंगे। पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी देते हुए बताया कि कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने G-7 समिट में भारत को आमंत्रित करने के लिए कॉल किया। हालांकि, कनाडा द्वारा अंतिम क्षण में यह निमंत्रण दिया गया, जिस कारण पूर्व में कयास यह लगाए जा रहे थे कि पीएम मोदी इस बार के G-7 समिट में भाग नहीं ले पाएंगे।
यह G-7 की 50th समिट होगी। यह विश्व के नेताओं का एक महत्वपूर्ण सम्मेलन है जिसमें कनाडा जलवायु परिवर्तन, डिजिटल नवाचार और वैश्विक सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चाओं का नेतृत्व करेगा।
कनाडा की दृष्टि इस बार की यह G-7 समिट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दूसरी बार होगा जब कनानास्किस G-7 को होस्ट कर रहा होगा। अंतिम बार वर्ष 2002 में किया था।
आमंत्रित देश व उनके लीडर-
भारत: पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)
ऑस्ट्रेलिया: पीएम एंथनी अल्बानीज़ (PM Anthony Albanese)
ब्राज़ील: राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा (President Luiz Inácio Lula da Silva)
मैक्सिको: राष्ट्रपति क्लॉडिया शेनबाम (उपस्थिती की पुष्टि नहीं हुई) (President Claudia Sheinbaum)
दक्षिण अफ़्रीका: राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा (President Cyril Ramaphosa)
यूक्रेन: राष्ट्रपति वोलोडिमायर ज़ेलेनस्की (President Volodymyr Zelenskyy)
यूरोपीय संघ: कौंसिल के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा (Council President António Costa) और आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन (Commission President Ursula von der Leyen)
G-7 समिट, 2025 के फोकस क्षेत्र-
- जलवायु परिवर्तन मिटिगैशन
- वैश्विक आर्थिक पुनर्प्राप्ति
- डिजिटल शासन और एआई विनियमन
- शांति और संघर्ष समाधान
- स्वास्थ्य अवसंरचना और महामारी तैयारी
G-7 शिखर सम्मेलन, 2025 का महत्व-
- वैश्विक नेतृत्व मंच: G-7 के बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।
- भू-राजनैतिक संदर्भ: विकसित हो रहे गठबंधनों और राजनयिक दरारों को दर्शाता है, विशेष रूप से भारत-कनाडा व अमेरिका-मैक्सिको आदि संबंधों में।
- प्रौद्योगिकी और स्थिरता: उभरती प्रौद्योगिकियों पर विनियमों के लिए प्रेरित करता है और जलवायु लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाता है।
इस यात्रा की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत का यूरोप में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए काम कर रहा है और इसी दिशा में पीएम नरेंद्र मोदी G-7 शिखर सम्मेलन के लिए कनाडा जाते समय साइप्रस का दौरा (Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit) करेंगे और घर लौटते समय क्रोएशिया जाएंगे।
साइप्रस का दौरा पीएम मोदी का इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें भारत तुर्की को मात देने जा रहा है। हाल ही में हुए भारत-पाक सैन्य तनाव के दौरान तुर्की ने बढ़-चढ़ कर पाकिस्तान का साथ दिया था। इसी प्रकार भारत, तुर्की की दुखती नस को दबाने की लिए सायप्रस की यात्रा करेगा।
पीएम मोदी का पिछले महीने क्रोएशिया, नीदरलैंड्स और नॉर्वे की यात्रा करने का कार्यक्रम था, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच के सैन्य तनाव के कारण यात्रा को स्थगित करना पड़ा।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : क्या है G-7 शिखर सम्मेलन ?

G7 शिखर सम्मेलन सात प्रमुख उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं की एक वार्षिक बैठक है, जहां वैश्विक आर्थिक नीति पर चर्चा और समन्वय किया जाता है और तत्काल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का समाधान किया जाता है।
G7 का जन्म 1973 के तेल संकट (Oil crisis) के दौरान हुआ जिसके परिणामस्वरूप वित्तीय संकट छा गया, जिसने 6 प्रमुख औद्योगिक देशों के नेताओं को 1975 में एक बैठक बुलाने के लिए मजबूर किया।
यह G7 बैठक इस प्रकार की 50वीं बैठक होगी। पहली बार यह 1975 में फ्रांस के रामबुइलेट में हुई थी। तब इसे G6 बैठक के रूप में जाना जाता था। एक साल बाद वर्ष 1976 में कनाडा को आमंत्रित किया गया था।
सात देशों का समूह (G-7) 1970 के दशक में विश्व की प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक अनौपचारिक मंच के रूप में स्थापित किया गया था, जिससे वे आर्थिक नीति पर चर्चा और समन्वय कर सकें। वर्षों के दौरान, G-7 ने अपनी कार्यसूची का विस्तार किया है, जिसमें सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य जैसे कई वैश्विक मुद्दे शामिल हैं। G-7 शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय सहयोग और संवाद के लिए विश्व पटल पर एक महत्वपूर्ण मंच में विकसित हो गया है।
7 देशों के नाम-
- कनाडा
- फ्रांस
- जर्मनी
- इटली
- जापान
- यूनाइटेड किंगडम
- संयुक्त राज्य अमेरिका
यूरोपीय संघ (The European Union) भी चर्चाओं में भाग लेता है लेकिन यह एक औपचारिक सदस्य नहीं है और शिखर वार्ता अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा, पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर उच्च स्तरीय चर्चाओं के लिए एक मंच प्रदान करती है। इसे कई वर्षों तक ‘G-8’ के रूप में जाना गया जब 1997 में मूल सात देशों में रूस शामिल हुआ, परंतु 2014 में रूस के यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र के अधिग्रहण के बाद सदस्यता से निकाले जाने के बाद इसे G-7 के नाम से पुनः नामित किया गया।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : जानें सायप्रस-तुर्की का विवाद कहाँ से प्रारंभ हुआ…

सायप्रस का इतिहास:
333 ईसा पूर्व तक यूनानी शासक सिकंदर का सायप्रस पर कब्जा रहा। इसके बाद ये क्षेत्र रोमन साम्राज्य के अधीन आ गया और 1571 में ऑटोमन साम्राज्य ने इस पर कब्जा किया। बाद में ब्रिटेन और ऑटोमन के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार इस क्षेत्र पर नियंत्रण तो ऑटोमन साम्राज्य के पास था लेकिन ब्रिटेन की सेना यहाँ रह सकती थी। इसी तरह यहाँ समय-समय पर इस क्षेत्र पर अलग-अलग शासकों के नियंत्रण में रहा।
1960 में सायप्रस ब्रिटेन की गुलामी से आजाद हुआ और इस तरह यहाँ 1878 से चले आ रहे ब्रिटिश उपनिवेशवाद का अंत और एक नए देश का उदय हुआ। नया-नया आजाद हुआ देश प्रगति की राह पर चलना चाहता था परंतु इसी समय सत्ता के संघर्ष का भी दौर प्रारंभ हो गया।
सायप्रस-तुर्की विवाद:
15 जुलाई, 1974 को सायप्रस में चुने हुए राष्ट्रपति माकरिओस III का ग्रीस के समर्थन से साइप्रियट नैशनल गार्ड (CNG) की अगुआई में तख्तापलट हुआ। इससे बौखलाए तुर्की ने सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संयुक्त राष्ट्र को दरकिनार करते हुए सायप्रस के उत्तरी भाग पर हमला कर दिया।

यह हमला दो चरणों में हुआ। दूसरे चरण के दौरान तुर्की ने फेमागुस्ता शहर को अपने कब्जे में ले लिया। साइप्रस के लगभग 36 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र पर तुर्की ने अवैध कब्जा कर लिया।
इस द्वीप पर मुख्य तौर पर दो समुदाय रहते हैं-
- ग्रीक साइप्रियॉट्स- आबादी करीब 77% है।
- तुर्क साइप्रियॉट्स- आबादी करीब 18 प्रतिशत है।
इस घटनाक्रम के दौरान 1975 समाप्त होते-होते तुर्की के हमले की वजह से लगभग 162000 ग्रीक-साइप्रियोट अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गए और लाखों की तादात में लोगों को तुर्की के अवैध कब्जे वाले क्षेत्र से सायप्रस के लोगों को अपने ही घरों और संपत्तियों को छोड़कर भागने को मजबूर कर दिया।
हालांकि, प्रारंभ में 20 हजार के करीब ग्रीक- साइप्रियोट अपना घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए, इनमें से ज्यादातर करपासिया प्रायद्वीप के थे। परंतु तुर्की के अत्याचारों के चलते धीरे-धीरे उन्हें भी अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।
सायप्रस संकट में सबसे अधिक त्रासद बात है बड़ी संख्या में लोगों का लापता होना। इसमें बच्चे, महिलायें और बुजुर्ग सभी शामिल हैं जिनका आज तक कोई पता नहीं चल सका।
1975 का वियना समझौता –
2 अगस्त, 1975 को तुर्की और साइप्रस के बीच वियना में समझौता हुआ। जिसके अनुसार, तुर्की को अपने अवैध कब्जे वाले क्षेत्र में लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, अपने मजहब को मानने की आजादी समेत सामान्य जीवनयापन करने की प्रत्येक सुविधा प्रदान कराना था।
परंतु, वियना समझौता का खुलेआम उल्लंघन करते हुए उत्तरी सायप्रस में अपने अत्याचार जारी रखे और वहाँ के मूल नागरिकों को सामूहिक पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। साथ ही तुर्की ने उत्तरी सायप्रस की डिमाग्रफी को बदलने के लिए 1,60,000 से अधिक तुर्कों को वहाँ बसाया और वहाँ की सांस्कृतिक विरासत को तहस-नहस करने के उद्देश्य से वहाँ के मूल नामों को बदल दिया जिसमें तुर्की ने एकतरफा निर्णय लेते हुए उत्तरी सायप्रस का नाम ‘टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दर्न सायप्रस’ 15 नवंबर, 1983 कर दिया और इस प्रकार इस क्षेत्र का “तुर्कीकरण” कर डाला गया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अपने प्रस्ताव संख्या 541 (1983) में तुर्की के इस कदम को अवैध ठहराते हुए उसे कड़ी फटकार लगाई और अपने अनैतिक कदम को पीछे खींचने की अपील की। सुरक्षा परिषद ने सभी देशों से सायप्रस की संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की अपील की। साथ ही कहा कि रिपब्लिकन ऑफ सायप्रस के अतिरिक्त कसी भी अन्य देश या सरकार को मान्यता न दी जाए।
1984 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव संख्या 550 पास किया जिसमें 1983 के रिजोलूशन 541 में कही बातों को और जोर देते हुए दोहराया गया। UNSC ने तुर्की के अवैध कब्जे को अस्वीकार बताते हुए कहा कि उत्तरी सायप्रस की डिमाग्रफी को बदलने का प्रयास नहीं होना चाहिए।
1974 से ही सायप्रस और तुर्की के बीच यह विवाद चलता आ रहा है। तुर्की इसे अन्तर्राष्ट्रिय मान्यता दिलाने में नाकाम रहा है। इसे सिर्फ तुर्की ही मान्यता देता है।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : क्यों है सायप्रस इतना महत्वपूर्ण?

सायप्रस की भौगोलिक स्थिति पर दृष्टि डालें तो इसके उत्तर में तुर्की, पूर्व में सीरिया और दक्षिण-पूर्व में इजरायल स्थित है। इस क्षेत्र को राजनीतिक और रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र पर जिसका नियंत्रण होगा वह भूमध्य सागर के पूर्वी भाग पर कंट्रोल स्थापित करने में सक्षम होगा। इसी कारण हर कोई यहाँ अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है।
सायप्रस को 4 वर्गों में बाटा जाता है इसके उत्तर में तुर्की का दावा है तो वहीं दक्षिण भाग पर युरोपियन यूनियन के सदस्य देश हैं और इसी को सायप्रस का मुख्य भाग माना जाता है। आपको बता दें तुर्की भूमध्य सागर का तीसरा सबसे बड़ा द्वीप है।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : भारत और सायप्रस के मध्य द्विपक्षीय संबंध…
भारत गणराज्य और साइप्रस गणतंत्र (RoC) ने 10 फरवरी 1962 को राजनयिक संबंध स्थापित किए। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध पारंपरिक रूप से बहुत करीबी और मित्रवत रहे हैं। भारत ने RoC के स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन किया और इसके बाद उसने साइप्रस मुद्दे के समाधान का लगातार समर्थन किया, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों, अंतरराष्ट्रीय कानून और यूरोपीय संघ के अधिग्रहण पर आधारित है।

वहीं दूसरी ओर RoC ने भारत के महत्वपूर्ण मामलों में समर्थन दिया, जिसमें भारत का यूएन सुरक्षा परिषद में चुनाव, भारत-यूएस नागरिक परमाणु समझौता, NSG और IAEA शामिल हैं। RoC ने शक्ति श्रृंखला के परमाणु परीक्षणों के बाद और पुलवामा आतंकवादी हमले के मुद्दों पर भी भारत का समर्थन किया।
दोनों देशों के बीच कई सद्भावनापूर्ण वक्तव्यों का भी आदान-प्रदान हुआ है, जो एक-दूसरे के प्रति उनके विशेष सम्मान और आभार को दर्शाता है। भारत ने नई दिल्ली में आर्चबिशप मकारियोस (Archbishop Makarios), जो की RoC के पहले राष्ट्रपति थे, के सम्मान में एक मार्ग का नामकरण किया है। वहीं RoC ने 1970 में महात्मा गांधी की शताब्दी जयंती के अवसर पर दो डाक टिकट जारी किए। जुलाई 1972 में RoC के संसद के बगीचे में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा स्थापित की गई और प्रतिमा के सामने की सड़क का नाम 1983 में ‘जवाहरलाल नेहरू एवेन्यू’ रखा गया। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर, RoC ने 10 सितंबर 2019 को एक स्मारक टिकट जारी किया।
Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit : भारत और सायप्रस के मध्य द्विपक्षीय व्यापार..
भारत और RoC के बीच द्विपक्षीय व्यापार हाल के वर्षों में लगातार बढ़ा है। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार अप्रैल 2022 – मार्च 2023 के लिए 198.05 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
पिछले पांच वर्षों के आंकड़े इस प्रकार हैं:

नवम्बर 2023 में निवेश को लेकर दोनों देशों के बीच पहली वर्चुअल बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में सायप्रस ने फिन-टेक क्षेत्र में अपनी योजनाओं और भारत में फिन-टेक क्षेत्र के अवसरों पर चर्चा की। साथ ही ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार केंद्र पर ‘तकनीक पर ध्यान’ और ‘साइप्रस में रणनीतिक परियोजनाओं में प्रत्यक्ष निवेश’ विषयों पर भी चर्चा की गई।
इसलिए कहीं न कहीं यह खबर अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है कि पीएम मोदी G-7 समिट में भाग लेने से पहले सायप्रस (Cyprus) की यात्रा (Modi Visit To Cyprus During G-7 Summit) करेंगे और समिट समाप्त होने के बाद क्रोएशिया (Croatia) की यात्रा करते हुए भारत आएंगे।
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