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ToggleINSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship : हाल ही में, भारतीय नौसेना का5वीं शताब्दी के अजंता चित्रों पर आधारितजहाज बुधवार को कारवार स्थित नौसेना बेस पर आयोजित एक औपचारिक समारोह में एक ‘प्राचीन सिले हुए पाल वाले जहाज’ को औपचारिक रूप से शामिल किया और इसका नाम INSV कौंडिन्य रखा गया। INSV कौंडिन्य का निर्माण 5वीं शताब्दी के जहाज के आधार पर किया गया है, जिसे अजंता की गुफाओं में देखी गई पेंटिंग में दर्शाया गया है।
संस्कृति मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित आईएनएसवी कौंडिन्य का निर्माण केरल के कुशल कारीगरों की एक टीम द्वारा सिलाई की पारंपरिक विधि का उपयोग करके किया गया है, और यह अजंता की गुफाओं में देखी गई पेंटिंग में दर्शाए गए 5वीं शताब्दी के जहाज पर आधारित है।
INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship : कब हुआ इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू?

यह परियोजना(INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship) जुलाई 2023 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और होडी इनोवेशन के बीच हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते के माध्यम से शुरू की गई थी, जिसे संस्कृति मंत्रालय से वित्त पोषण प्राप्त हुआ था और इसका उद्देश्य भारत की समृद्ध जहाज निर्माण विरासत को प्रदर्शित करना है।
नौसेना ने एक बयान में कहा कि “सितंबर 2023 में कील बिछाने के बाद, जहाज का निर्माण केरल के कुशल कारीगरों की एक टीम द्वारा सिलाई की प्राचीन विधि का उपयोग करके किया गया। जिसका नेतृत्व मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन ने किया। कई महीनों तक, टीम ने कॉयर(Coir) रस्सी, नारियल फाइबर और प्राकृतिक राल(Natural Resin) का उपयोग करके जहाज के पतवार पर लकड़ी के तख्तों को बड़ी मेहनत से सिल दिया”।
मुख्य बिन्दु :
- भारतीय नौसेना ने हाल ही में INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship को शामिल किया — यह पहला ऐसा जहाज़ है जिसे प्राचीन भारतीय टांके (Tankai) तकनीक से बनाया गया है।
- इसका उद्देश्य भारत की भूली-बिसरी जहाज़ निर्माण परंपराओं को पुनर्जीवित करना है।
- यह परियोजना भारतीय नौसेना, संस्कृति मंत्रालय और गोवा स्थित एक शिपबिल्डिंग कंपनी के बीच त्रिपक्षीय समझौते के तहत संपन्न हुई है।
- यह ऐतिहासिक पोत 2025 के अंत तक ओमान की ऐतिहासिक यात्रा पर रवाना होगा, प्राचीन व्यापार मार्गों को दोहराते हुए।
INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship : ये तथ्य बनाते हैं इसे खास..

यह जहाज भारतीय नौसेना का 5वीं शताब्दी के अजंता चित्रों में दिखाए गए नौकाओं पर आधारित है।
इसकी प्रेरणा के स्रोत हैं-
- अजंता भित्ति चित्र
- युक्तिकल्पतरु (9वीं सदी में राजा भोज द्वारा रचित)
- विदेशी यात्रियों के विवरण जिन्होंने सिलाई से बने भारतीय जहाज़ों का उल्लेख किया
यह है इन प्रतीकात्मक रूपांकनों से सज्जित-
- गंडभेरुंड (कदंब वंश का दो सिरों वाला गरुड़)
- पालों पर सूर्य प्रतीक
- सिम्हा याली (प्राचीन कथाओं का सिंह) — जहाज के अग्र भाग पर
- सिंधु-सरस्वती सभ्यता से प्रेरित पत्थर का लंगर
INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship : कौन थे कौंडिन्य (प्राचीन तथ्य)?

कौंडिन्य को भारतीय ग्रंथों वह उचित सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह पात्र थे। इसकी बजाय कंबोडियाई और वियतनामी के स्रोतों में उनकी गाथा आज भी सुरक्षित है।
- कौंडिन्य 1वीं सदी के भारतीय समुद्री यात्री थे, जिन्होंने मेकोंग डेल्टा (आधुनिक कंबोडिया) की ओर यात्रा की।
- उन्होंने योद्धा रानी सोमा से विवाह किया और ‘फुनान राज्य’ की स्थापना की — जो दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला भारतीयकृत राज्य माना जाता है।
- खमेर और चाम राजवंश (आधुनिक कंबोडिया व वियतनाम) स्वयं को उनके वंशज मानते हैं।
- उनकी गाथा कंबोडियाई और वियतनामी स्रोतों में सुरक्षित है, जबकि भारतीय ग्रंथों में उनका उल्लेख दुर्लभ है।
INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail Ship : क्या है टांके (Tankai) पद्धति?
भारतीय प्राचीन गौरवशाली इतिहास में जब दृष्टि डालते हैं तो यह तकनीक लगभग 2,000 वर्ष या उससे भी पुरानी पारंपरिक भारतीय जहाज़ निर्माण में देखने को मिलती है।
इस पद्धति की मुख्य विशेषताएँ हैं-
- सिले हुए तख्तों की तकनीक: सागौन, साल, या आम की लकड़ी की पट्टियाँ छेदकर नारियल की रस्सियों से सिलना।
- धातु रहित निर्माण: यूरोपीय तकनीकों के विपरीत, इसमें लोहे की कीलें नहीं होतीं — जिससे जहाज़ हल्का, लचीला और आसानी से मरम्मत योग्य होता है।
- ढांचा निर्माण पद्धति: पहले जहाज़ का बाहरी खोल बनाया जाता है, फिर अंदर की पसलियाँ जोड़ी जाती हैं — यह समुद्र में अधिक लचीलापन देता है।
- स्वदेशी सामग्री: नारियल की रस्सी, डामर रेजिन, और पशु वसा — जो समुद्री पानी के प्रतिरोधी होते है।
यह पहल भारत के प्राचीन समुद्री इतिहास और तकनीकी विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में अहम कदम है। साथ ही साथ यह INSV Kaundinya Ancient Stitched Sail भारतीय नौसेना की सांस्कृतिक कूटनीति (Cultural Diplomacy) और समुद्री विरासत संरक्षण (maritime heritage conservation) की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
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